जब भी हम किसी विकसित देश के बारे में बात करते हैं तो सामान्य तौर पर सबसे पहले हमारी कल्पनाशक्ति हमें क्या दिखाती है? एक साफ-स्वच्छ शहर, ऊंचे भवन, गगनचुंबी इमारतें, प्रोद्योगिक प्रगति और एक तेज रफ्तार से दौड़ती हुई जिंदगी? खैर, जापान में इस सब के अलावा भी बहुत कुछ है जो इसे अपने आप में एक अलग देश बनाता है।
लोग कहते हैं कि भारत की अत्यधिक जनसंख्या इसके विकास की मुख्य बाधा है। लेकिन, जापान की यात्रा करने के बाद लगता है कि यह विचार कितना मिथ्या है। कार्य समय के दौरान टोकियो की सड़कों पर भी वैसी ही भीड़ होती है जैसी की भारत के किसी महानगर में। लेकिन, फिर भी, वे समय पर पहुँचते हैं (जहाँ समयबद्धता क्षणों में आंकी जाती है)। इसके पीछे क्या कारण है? क्या इसका कारण सिर्फ उन्नत प्रोद्योगिकी है? बिल्कुल नहीं। सार्वजनिक सेवाओं की गुणवत्ता बढ़ाने और सार्वजनिक व्यवहार को सामान्य रखने के लिए सख्त अनुशासन और नियमबद्धता का तालमेल भी उतना ही महत्वपूर्ण घटक है। एक उदाहरण के लिए, जब वहाँ लोग एस्केलेटर से जाते हैं तो यह एक अनकहा नियम है कि लोग बाई ओर खड़े होते हैं ताकि जिन लोगों को वास्तव में जल्दी हो वे दाई ओर से चढ़ कर एस्केलेटर के साथ साथ खुद भी चढ़ाई कर जल्दी जा सकें। वहाँ के स्टेशनों की संरचना एक प्रणाली पर आधारित होती है और निर्देशों और नियमों का उपयोग करते हुए लोग आसानी से गंतव्य तक पहुँच जाते हैं। इसमें कोई संदेह नहीं है कि जापान एक अदुभुत उदाहरण है जहाँ प्रोद्योगिकी को मानव स्वभाव के अनुसार ढाला गया है ताकि लोग जीवन की दैनिक गतिविधियों की एक मानक प्रक्रिया का पालन करते हुए इसका समग्र लाभ उठाते हैं।
ऑटोमोबाइल क्षेत्र में टोयोटा और निशान जैसे निजी उर्जाकेन्द्रों से लेकर सेवन इलेवन तक मानकीकरण, गहन शोध, बारीकी और मानव व्यवहार की संवेदनशीलता के कई प्रकाशमान उदाहरण हैं जो किसी भी उत्पाद की पृष्ठभूमि हैं। उदाहरण के लिए, सेवन-इलेवन के त्वरित उपभोग के लिए तैयार कुछ उत्पादों को शोध के आधार पर इस प्रकार पैक किया जाता है कि ओपनर के मुँह का आकार ऐसा हो जिससे उपभोक्ता द्वारा खाते समय उत्पाद ढुले/बिखरे नहीं। दूसरा उदाहरण टोयोटा का है जहाँ किसी भी असेंबली में की जाने वाली विभिन्न गतिविधियों का मानकीकरण इस स्तर पर पहुँच गया है कि वेल्डिंग क्षेत्र से आने वाली दो इकाइयों के उत्पादन में लगने वाला अंतराल 150 सेकण्ड तक कम हो गया है।
जापान में अधिकांश कंपनियों की संगठनात्मक संरचना और प्रकृति बड़ें पैमाने पर पारंपरिक है, जहाँ किसी भी संघटन में कर्मचारियों के पलायन की दर पश्चिमी देशों की तुलना में काफी कम है। यहाँ लोग, सामान्यतः, अपना सारा जीवन एक सी संघठन में काम करते हुए बिताना पसंद करते हैं और किसी भी संघठन के प्रति उनकी वफादारी को एक सकारात्मक रूप से वांछनीय गुण माना जाता है। लेकिन, राकुटेन की तरह के नये युग के संघठनों की शुरूआत के साथ अब इस प्रथा में बदलाव आ रहा है, विशेष रूप से अब जबकि जापान में मानव संसाधन की अत्यंत कमी हो रही है और इसे पूरा करने के लिए उन्हें दूसरे देशों के लोगों को आमंत्रित करना पड़ रहा है।
व्यापक रूप में, जापान के पास ऐसी कई समस्याओं का समाधान है जिनका सामना आज भारत कर रहा है और, जबकि भारत में नवयुवक मानव संसाधन का भंडार मौजूद है, निकट भविष्य में दोनों देशों के बीच प्रभावी सहजीवी संबंध वास्तविक रूप ले सकते हैं।