
भारत के भूतपूर्व नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक श्री विनोद राय को 'सरकारी संस्थाओं की भूमिका और भारतीय कारोबार के लिए विनियमन' विषय पर विशेष व्याख्यान देने के लिए आमंत्रित कर भारतीय प्रबंध संस्थान नागपुर को प्रसन्नता हुई। भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के 1972 बैच (केरल कैडर) के अधिकारी श्री राय को भारत में 2011 में 2जी स्पैक्ट्रम के लाइसेंस तथा आबंटन के मुद्दे पर रिपोर्ट प्रकाशित करने का श्रेय जाता है। भारतीय प्रबंध संस्थान नागपुर के छात्रों को उनके संबोधन के पूर्व पीजीपी अध्यक्ष प्रो. दीपार्घ्य मुखर्जी ने उनका संक्षिप्त परिचय देते हुए उनका स्वागत किया। परिचय के पश्चात, श्री राय ने उपस्थित जनों को उन घटनाओं से अवगत कराया जिन्होंने उदारीकरण के पश्चात के युग में
भारत के आर्थिक विकास को प्रभावित किया है; वे मुद्दे जिनके परिणामस्वरूप देश में आज मंदी का दौर है; एवं प्रशिक्षण पा रहे प्रबंधकों की वह भूमिका जिसमें उन्हें यह सुनिश्चित करना है कि अल्पकालिक लाभों के लिए दीर्घावधि वृद्धि के साथ समझौता न किया जाए। श्री राय ने स्पष्ट किया कि 2009 की वैश्विक मंदी के आघात को सहने के बावजूद कैसे भारतीय
अर्थव्यवस्था 1991 के पश्चात पर्याप्त वृद्धि हासिल करने पर भी सहचर पूंजीवाद के दुष्प्रभावों से ग्रस्त हुई। उन्होंने महसूस किया कि केंद्र में मिल-जुल कर बनाई गई सरकार पर क्षेत्रीय दलों ने दबाव ड़ालकर अक्षम तथा ओवरलीवरेज संस्थाओं के प्रवेश, विशेष तौर पर बुनियादी ढ़ांचे के विकास में, को अनुमति दिलाई। इसके परिणामस्वरूप हुई जबरदस्त हानि से अर्थव्यवस्था को तगड़ा झटका लगा, जिससे उबरने में यह संघर्ष कर रही है। इसके बाद उन्होंने सार्वजनिक संस्थानों की चर्चा की जो नियंत्रित संस्थाओं में जबावदेही
सुनिश्चित करते हैं। उन्होंने उल्लेख किया कि ये संस्थान बेहतर गवर्नेंस को बढ़ावा देते हैं जो कि अनवरत आर्थिक विकास के लिए आवश्यक है। उन्होंने भारतीय रिज़र्व बैंक, चुनाव आयोग,
भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक जैसी संस्थाओं की आवश्यकता पर जोर दिया जो कि कार्यात्मक दक्षता के लिए सरकार से एक निश्चित दूरी बनाए रखते हैं। उन्होंने अपनी नई
पुस्तक Rethinking Good Governance से उद्धरण देते हुए जोखिम लेने के अनिच्छुक भारतीय रिज़र्व बैंक तथा विकासोन्मुखी सरकार के बीच के स्वस्थ द्वंद की चर्चा की और कहा कि इससे देश का हित सुनिश्चित किया जा सकता है। उनकी राय में बाह्य हस्तक्षेप को कम करने पर ध्यान केंद्रित होना चाहिए, इसी वजह से वर्तमान संकट उत्पन्न हुआ है।
श्री राय के संबोधन का अंतिम भाग भविष्य के प्रबंधकों से अपेक्षित व्यवहार पर केंद्रित था ताकि उनके नेतृत्व में उन समस्याओं को सुलझाया जा सके जिससे आम जनता बड़े पैमाने पर
प्रभावित हो सकती है। उन्होंने अनुलंब जबावदेही पर बोलते हुए कहा कि इसकी मांग मीडिया एवं नागरिक जैसी सरकार तथा नौकरशाही से बाहर की संस्थाएं करती हैं। उन्होंने उल्लेख किया कि नेतृत्व करने वाले व्यक्ति जो भी काम करते हैं, उनके हर काम की जांच करने का शक्ति अब आम जनता के पास है। नेताओं को चाहिए कि वे अल्पावधि प्रतिस्पर्धी लाभ हासिल करने के लिए अनैतिक परंपराओं से दूर रहें। उन्होंने दुहराया कि भविष्य के नेताओं में उद्देश्यपरकता,पारदर्शिता, जबावदेही तथा पेशेवर सत्यनिष्ठा के बीज ड़ालने चाहिए। अंत में, श्री राय ने उपस्थित श्रोताओं यह तथ्य स्वीकार करने को कहा कि वे एक प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थान के छात्र हैं तथा उन्हें समाज को उससे ज्यादा वापिस देना चाहिए जितना उन्होंने इससे लिया है। बाद में छात्रों के प्रश्नों के लिए मंच को खोल दिया गया। प्रश्नोत्तर सत्र का संचालन प्रो. मुखर्जी ने किया तथा श्री राय ने खेल प्रशासन की गवर्नेंस, चूक करने वाले व्यक्तियों से जबावदेही का आश्वासन, भारतीय रिज़र्व बैंक सरीखे संस्थानों में स्वायत्ता तथा निष्पक्ष कार्यप्रणाली सुनिश्चित करना, पीएमसी बैंक का संकट तथा सरकारी कार्यक्षेत्र में कॉरपोरेट पेशेवरों के प्रवेश जैसे विभिन्न मुद्दों पर चहुंमुखी विचार सबके सामने रखे। कार्यक्रम का संचालन ईना गुप्ता ने किया तथा इसके समापन पर प्रो. राहुल कुमार सेट ने श्री
राय को स्मृति चिह्न प्रदान किया। एसएसी के अध्यक्ष भरत तुर्लापति ने आभार व्यक्त किया। अपनी गरिमामयी उपस्थिति तथा ज्ञानप्रद विचारों के लिए भारतीय प्रबंध संस्थान नागपुर श्री
विनोद राय के प्रति धन्यवाद ज्ञापित करता है।